Tuesday, November 3, 2009

नकलची प्रोफेसरो की पुस्तको का सालाना 300 करोड रू.का कारोबार

यह खबर 03-11-09 के पंजाब केसरी, दिल्ली के पेज 5 की बाटम स्टोरी है-

नकलची प्रोफेसरो की पुस्तको का सालाना 300 करोड रू.का कारोबार
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली। देशी-विदेशी पुस्तको ,शोध पत्रो से मैटर लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम एक साल में एक से लगायत 29 तक पुस्तके छपवाने और उसे मंहगे दाम पर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में खरीदवाने का सालाना लगभग 300 से करोड़ रूपये से अधिक का करोबार चल रहा है। यानी नकल करके लिखी किताबों का सालाना 300 करोड़ रूपये से अधिक का कारोबार। जिसमें यू.जी.सी के कुछ भ्रष्ट आला अफसरो,विश्वविद्यालयों के कुछ भ्रष्ट कुलपतियों, प्रोफेसरो, रीडरो, लेक्चररो, रजिस्ट्रारो, लाइब्रेरियनो, पुस्तक प्रकाशकों, सप्लायरों का एक रैकेट बन गया है। जो एक –दूसरे को मदद करके देश को प्रति वर्ष 300 से 500 करोड़ रूपये की चपत लगा रहे हैं। और युवा मेधा को कुंद कर रहे हैं। यह रैकेट किस तरह काम कर रहा है इसको इस तरह आसानी से समझा जा सकता है। दिल्ली के एक कालेज का एक प्रोफेसर कुलपति होकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक नये खुले विश्वविद्यालय में जाता है।वह अपने कालेज के कुछ अस्थाई अध्यापको को बुलाकर विश्वविद्यालय में पहले अस्थाई अध्यापक के तौर पर रखता है।फिर उनसे संबंधित विषय के लेक्चरर की पोस्ट पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकलवाता है, और उनकी नियुक्ति कर देता है। उन्हे लेक्चरर व हेड बना देता है।वह दिल्ली में कालेज में पढ़ाते समय हिन्दी में एक किताब लिखा था ,जिसे तैयार कराने में एक अस्थाई अध्यापक ने मदद की थी। जिसे ले जाकर उसने पत्रकारिता विभाग खोला और उसका लेक्चरर व हेड बना दिया। कुलपति बना वह व्यक्ति दिल्ली के अपने एक चहेते पुस्तक सप्लायर को विश्वविद्यालय में पुस्तक सप्लाई का ठेका देने लगा।उस सप्लायर के परिजनो के अलग –अलग नाम से कई पब्लिशिंग कम्पनी हैं। जिसमें वह उस कुलपति और उसके लाये –बनाये लेक्चररो की हिन्दी और अंग्रेजी में पुस्तकें छापने लगा।उन किताबों को वे कुलपति,लेक्चरर व हेड अपने विभाग और विश्वविद्यालयो में खरीदवाने लगे। एक -एक किताब 600 रूपये से 2500 रूपये तक की। एक साल में 5 से 10 वालूम वाली दो से तीन विषयों तक की यानी 20 से30 वालूम तक पुस्तकें एक अध्यापक के नाम छपीं। इनमें एक पूरे सेट का दाम 5 से 10 हजार रूपये तक है।ये पुस्तकें केवल लाइब्रेरी में बेचने के लिए हैं, रैकेट के मार्फत सप्लाई होती हैं। वि.वि. के लिए किताब सप्लाई के कोटेशन में 10 से 20 प्रतिशत तक छूट दिखा सालाना 50 लाख से लगायत लगभग एक करोड़ रूपये तक की पुस्तको की खरीद होने लगी।इसमें पुस्तकों के मूल्य का 30 से 50 प्रतिशत तक कमीशन अफसरो, कुलपति, रजिस्ट्रार, लेक्चरर-हेड, पुस्तकालय प्रमुख के बीच बंटने लगा।पुस्तको की खरीद का लगभग95 प्रतिशत बजट यू.जी.सी. से जाता है,इसलिए इस मामले में इनके अफसरो की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। यू.जी.सी. के नियम के अनुसार लेक्चर को रीडर और रीडर को प्रोफेसर बनने के लिए उम्दा शोध-पत्र और 3किताबें लिखा होना चाहिए। कुलपति बनने के लिए तो और भी उम्दा किताबें,शोध-पत्र लिखा होना चाहिए। यह कोटा पूरा करने के लिए पूर्वी उ.प्र. के उस वि.वि. के लेक्चरर , रीडर व प्रोफेसर लोग विदेशी विश्वविद्यालयो के प्रोफेसरो, विशेषज्ञो, वैज्ञानिको के लिखे पुस्तको, शोध-पत्रो को लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम से अंग्रेजी में दर्जनों पुस्तकें छपवा लीं। पत्रकारिता विभाग के लेक्चर हेड ने हिन्दी में एम.ए. किया है,अंग्रेजी न तो ठीक से बोल सकते हैं नहीं लिख सकते हैं। लेकिन उन्होने सेटेलाइट और कम्प्यूटर आदि पर इस तरह इंटर नेट से कट-पेस्ट करके या हार्ड कापी से नकल कर,मैटर हूबहू उतारकर, कैम्ब्रिज और आक्सफोर्ड की अंग्रेजी में किताब अपने नाम छपवा लिया।इस तरह उस कुलपति और उसके लाये बनाये लेक्चररो ने उस बुक पब्लिशर,सप्लायर के सहयोग से दर्जनो पुस्तकें अपने नाम छपवाकर स्वंभू विद्वान बन गये। पत्रकारिता वाले लेक्चरर –हेड तो फिर छत्तीस गढ़ में एक भ्रष्ट अफसर से कुलपति बने व्यक्ति के यहां जुगाड़ लगाकर रीडर हेड बन गये । उसके कुछ माह बाद वह महाराष्ट्र में एक सजातीय पुलिसिया कुलपति की कृपा से प्रोफेसर व हेड बन गये। छत्तीसगढ़ में जहां वह गये उस वि.वि. में भी पुस्तको की मोटी खरीद हुई। पूर्वी उ.प्र. के नये वि.वि. में जो कुलपति बने थे वह भी अब उसी जुगाड़ से महाराष्ट्र के वि.वि. में मोटे पगार पर आफिसर आन स्पेशल ड्यूटी बन गये हैं।इस कुलपति ने पूर्वी उ.प्र.के नये वि.वि. में जिनको ले जाकर लेक्चरर बनाया उसमें से कई अब नकल करके कई किताब अपने नाम छपवा रीडर व प्रोफेसर बन गये हैं।यह नकल करके किताब लिखने ,उसे मंहगे दाम पर पुस्तकालयों में खरीदवाने और उन नकल करके लिखी किताबों के आधार पर लेक्चरर ,रीडर, प्रोफेसर, कुलपति बनने वालो के रैकेट का एक छोटा सा उदाहरण। इससे और बड़े रैकेट के सप्रमाण उदाहरण भी हैं। जो देशी-विदेशी पुस्तको, शोध-पत्रों के कापी राइटेड मैटर, हूबहू कापी करके बनाई जा रही पुस्तको के कई अरब रूपये के सालाना कारोबार को और बढ़ाने में लगे हैं। #